जेट एयरवेज के दोबारा उड़ान भरने की उम्मीदें खत्म हो गई हैं। बैंकों ने सोमवार को एतिहाद और हिंदुजा समूह की एयरलाइन को खरीदने के लिए कड़ी शर्तों को खारिज कर दिया। उसने कर्ज वसूली के लिए जेट का मामला दिवाला संहिता के तहत कार्रवाई के लिए राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) में भेजने का फैसला भी किया।

कर्जदाता बैंकों के समूब एसबीआई ने कहा कि एयरलाइन के लिए सिर्फ एक बोली ही प्राप्त हुई थी और उसके साथ भी शर्तें जुड़ी थीं। ऐसे में इस तरह का सौदा दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता के तहत बेहतर तरीके से हो सकता है। बैंकों ने एयरलाइन के लिए नया निवेशक खोजने का भरसक प्रयास किया, लेकिन कोई विकल्प नहीं रहने पर यह निर्णय करना पड़ा। गौरतलब है कि जेट एयरवेज को उधार देने वाली दो फर्म शैमन व्हील्स और गग्गर एंटरप्राइजेज ने एयरलाइन के खिलाफ दिवाला प्रक्रिया शुरू करने के लिए 10 जून को एनसीएलटी में अपील की थी। इस पर 20 जून को सुनवाई होनी है। एयरलाइन पर शामन व्हील्स का 8.74 करोड़ रुपये और गग्गर का 53 करोड़ रुपये का बकाया है।

एतिहाद-हिंदुजा की कड़ी शर्तों से टूटी वार्ता
एतिहाद और हिंदुजा समूह ने एयरलाइन में निवेश के बदले मांग की थी कि बैंक अपना 95 प्रतिशत और परिचालन से जुड़े कर्जदाता 69 प्रतिशत कर्ज माफ करें। इसके लिए दोनों तरह के कर्जदाता आपस में वार्ता करें। एतिहाद और हिंदुजा महज पांच हजार करोड़ रुपये एयरलाइन में निवेश कर उड़ानें शुरू करना चाहते थे।

दो महीने से बंद चल रही थी उड़ानें
जेट एयरवेज का परिचालन 17 अप्रैल से बंद है और एसबीआई की अगुवाई वाले बैंकों का ही 8500 करोड़ रुपये से अधिक का बकाया है। हालांकि उसका का कुल कर्ज अब 13,000 करोड़ रुपये पर पहुंच चुका है। एयरलाइन पर उसे माल और सेवाएं देने वालों का 10,000 करोड़ रुपये और कर्मचारियों के वेतन का 3,000 करोड़ रुपये का बकाया है। बैंकों के समूह ने फरवरी में जेट के चेयरमैन नरेश गोयल के पद और हिस्सेदारी छोड़ने के बाद एयरलाइन की 51 फीसदी शेयर खुद लिए थे और नए निवेशक की तलाश शुरू की थी।

कर्ज वसूली अब आसान नहीं
अर्नेस्ट एंड यंग की वित्तीय सेवा प्रमुख आबिजेर दीवानजी ने कहा कि एयरलाइन के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया आसान नहीं होगी। जेट के पास ज्यादातर विमान लीज पर थे और उसके पास स्लॉट के अधिकार और एयरपोर्ट पर तमाम सुविधाएं परिचालन से जुड़ी हैं, जो अगर सरकार वापस ले लेती है तो संपत्ति के नाम पर कुछ नहीं बचता है। उसके आधे से ज्यादा स्लॉट दूसरी कंपनियों को दिए भी जा चुके हैं।

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