बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने राज्य में भूमि सुधार करने और भूमि विवाद को समाप्त करने की ओर अपना कदम बढ़ा दिया है, जिसे देखते हुए उन्होंने एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला लिया है. जिसके बाद बिहार में कई लोगों के बीच हड़कम्प मचना तय है. सीएम के निर्देश के बाद में बिहार में करीब 100 वर्षों के बाद भूमि सर्वे कार्य की शुरुआत की गई है. सूत्रों की माने तो अभी आम आदमी को इस बात की भनक भी नहीं लगी हैं. लेकिन अधिकारियों द्वारा गुप्त रूप से जमीनों के सर्वे का काम शुरू कर दिया है. जिसे 2022 तक पूरा कर लिया जायेगा.

आम लोगों को इस खबर को पढ़कर शायद यही लग सकता है कि यह सरकारी कार्य है और इसमें पड़ने की जरूरत नहीं हैं, पर जो लोग यह सोचते हैं उन्हें बता दें कि इस काम से आपका सीधा संबंध जुड़ा हुआ है. मालूम हो कि इससे पहले 1974 में चकबंदी के लिए नोटिफिकेशन जारी करने के बाद सर्वे का काम 1978 में शुरू किया गया था. इस दौरान चकबंदी का नक्शा भी बनाया गया था. लेकिन 1990-92 में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने इस कार्य पर रोक लगा दिया था. जिसे अब फिर से सीएम नीतीश कुमार ने शुरु किया है.

इस बात के पूरी तरह से सामने नहीं आने का कुछ राजनीतिक कारण भी बताया जा रहा है. क्योंकि विपक्षी के तरफ से मामले को विपरीत हवा भी दिया जा सकता है. हालांकि गौर किया जाये तो मौजूदा समय में भूमि विवाद को निपटाना अत्यंत आवश्यक है क्योंकी इसकी वजह से कई बार मारपीट और मर्डर जैसी संगीन वारदाते भी सामने आ चुकी हैं.

यदि नीतीश कुमार कार्यकाल में अबतक हुए भूमि सुधार कार्य की बात की जाये तो उन्होंने कई बदलाव किये हैं. उन्होंने सरकार में आने के बाद देवव्रत बंदोपाध्याय की अध्यक्षता में भूमि सुधार आयोग का गठन किया है. इस आयोग ने सरकार को कई प्रस्ताव दिए. जो इस प्रकार हैं:
-जिनमें नया बटाईदार कानून लाने व वर्तमान कानून में संसोधन का प्रस्ताव
-गैरमजरुआ जमीन का सही उपयोग करने का प्रस्ताव
-भूहदबंदी को सही तरीके से लागू किये जाने का प्रस्ताव
– भूदान से प्राप्त जमीनों को लेकर उत्पन्न विवादों को सुलझाने के प्रस्ताव
-गरीबों को एक एकड़ जमीन देने का प्रस्ताव
-भूमिहीनों को 10 डिसमिल जमीन मुहैया कराने का प्रस्ताव

इस प्रस्तावों के समाने आने के बाद नीतीश सरकार ने 3 डिसमिल जमीन देने की घोषणा तो की, लेकिन कुछ समय बाद इस तरफ से सरकार का ध्यान हट गया. यानि स्थिति पहले जैसी ही रह गई. मौजूदा समय में जमीनों के सर्वे को लेकर को नीतीश सरकार ने बाते कहीं हैं. उनमें कहा गया गया है कि सरकारी घोषणा के अनरूप तीन साल में अत्याधुनिक तरीके से सर्वे होगा, सेटेलाइट से जमीन की तस्वीर ली जाएगी, इन जमीनों का मिलान फिर नकशे से किया जाएगा. यह काम कम्पूटर के माध्यम से होगा. उसके बाद उन जमीनों का चिन्हित कर अंचलों में मौजूद खानापुरी की टीम द्वारा जमीन के टुकड़ों पर नंबर अंकित किया जायेगा. फिर कानूनगों स्तर के अधिकारी की अनुमति के बाद मुखिया, सरपंच के प्रतिनिधियों के साथ अंचलाधिकारी जमीन मालिक को उसका जमीन बतायेंगे. अंचलाधिकारी द्वारा ड्राफ्ट प्रकाशन का काम किया जायेगा. यदि कोई गड़बड़ी सामने आती है तो उसकी शिकायत भूमि सुधार अपर समाहर्ता के समक्ष की जाएगी. भूमि अपर समाहर्ता के स्तर से ड्राफ्ट के अंतिम प्रकाशन का काम किया जाएगा. 9 करोड़ रूपये खर्च कर तीन वर्ष के भीतर सर्वे का काम पूरा कर लिया जाएगा. जिसका 5 साल के भीतर चकबंदी किया जाएगा.

यदि जमीनों के सर्वे कर ली जाती हैं इसकी कई फायदे सामने आएंगे. सबसे पहले तो बिहार में जमीन विवाद के मामलें लगभग समाप्त हो जाएंगे. इस मामलों के निपटारे के लिए न्यायालयों पर दबाव न के बराबर हो जाएगा. स्वामित्व की लड़ाई का झंझट खत्म हो जाएगा. राजस्व वसूली में वृद्धि के साथ साथ अवैध तरीके से हासिल जमीनों का खेल खत्म हो जाएगा. उन दलालों को तगड़ा झटका लगेगा जो अपने मुनाफे के लिए जमीनों की हेराफेरी करते हैं. यानि की उनका काला कारोबार समाप्त हो जाएगा. हर तरह की जमीनों जी जानकारी सरकार के पास हो होगी.

ऐसा कहा जा रहा है कि बिहार में यहां विभिन्न ट्रस्टों, मठ, मंदिरों, पूर्व के समय के नहर निर्माण, पहले के हाट बाजारों, जमींदारों के रिश्तेदारों, प्रोपर्टी डीलरों, भूदान, कब्रिस्तान निर्माण, गैरमजरुआ, आम, खास और खास महल के नामों पर काफी जमीनों को छुपाया गया हिया. जिनके बीच अब हड़कम्प मचना तय है.

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