सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ लाखों करोड़ों लोग तिलमिला कर सड़क पर निकल गये. जमकर नारे और प्रदर्शन किया. सबको SC-SC एक्ट में संशोधन के फैसले से तकलीफ थी. सबने खूब नारेबाजी की तोड़ फोड़ की ट्रेनों को रोका, बसों में आग लगाई और सड़क जाम किया ताकि उस फैसले को बदल दिया जाये जिनके खिलाफ वो सड़कों पर उतरे हैं. लेकिन अपनी बात मनवाने के लिए किसी कि जाना से खिलवाड़ किया जाना चाहिय क्या? यह कहां की इंसानियत हैं? मैं लोगों यह सवाल पूछना चाहता हूँ अपनी तकलीफ को कम करने के लिए उन्हें दूसरों को तकलीफ देने का अधिकार किसने दिया? जब अपने पर पड़ती है तो हालत खराब हो जाती है. सडकों पर निकल कर हुर्दंग मचाने लगते हैं. लेकिन वो मां क्या करेगी, किसके पास जाएगी, कहां विरोध करेगी जिसके कुछ ही दिन के बच्चे को आज अकारण ही तड़प तड़पकर मरना पड़ा.

आखिर क्यों उन खुदगर्जों का दिल आज नहीं पिघला जो खुद किसी का बेटा है. ऐसी अगर तुम्हे कुछ हो जाता तो तुम्हारी मां उसी तरह छाती पिटती जैसे आज एक लाचार मां छाती पीट कर अपने दर्र को बयां कर रही थी. जो आज से कुछ महीने पहले यह सोच कर खुश हो रही होगी कि उसके भी आंगन में किलकारी गूंजेगी. जो मित्र हमारे साथ जुड़े हुए हैं हम उन्हें बाताना चाहते हैं कि कुछ निर्दयी लोगों ने अपनी बात मनवाने के लिए एक लाचार मां की बात नहीं मानी और उसके बेटे को मरने के लिए छोड़ दिया, जिसने आज कुछ पल में चिकित्सा के आभाव में जान दे दिया. यह वैशाली की घटना है. जहां विभिन्न संगठनों व राजनीतिक दलों द्वारा बुलाए गए भारत बंद के चलते सोमवार को बिहार के वैशाली जिले में एक नवजात की मौत हो गई.

बच्चे का जन्म महनार के पीएचसी में हुआ था. गंभीर हालत देख उसे बेहतर इलाज के लिए सदर हॉस्पिटल हाजीपुर रेफर किया गया था. बच्चे को लेकर उसकी मां एम्बुलेंस से हाजीपुर के लिए चली, लेकिन महनार के अम्बेडकर चौक पर एम्बुलेंस को बंद समर्थकों ने रोक दिया. बच्चे को गोद में लिए मां रास्ता देने की गुहार लगाती रही, लेकिन किसी ने उसकी एक न सुनी. एम्बुलेंस जाम में फंसी रही और बच्चे की मौत हो गई. इसके बाद वो मां फफक कर रोने लगी औअर अपने सबसे बड़े गम को आँखों के माध्यम से बाहर निकालने लगी. जिसे देख एक हैवान का दिल भी पसीज जाता लेकिन आज कुछ इंसानों का दिल नहीं पिघला सका.

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