सऊदी अरब में भारत सहित कई देशों के कामगार मजदूरी करने जाते हैं. जिनमें से कुछ तो पैसे कमाकर सही सलामत वतन लौट आते हैं लेकिन कई ठगी के शिकार होकर सऊदी में मुश्किल हालातों का सामना करते रहते हैं. उन्हें मजबूरी में मदद की गुहार लगाने पड़ती है.
 
 
फिर भी बहुत कम ही को न्याय मिल पाता है. जबकि वहां कामगारों के लिए बने कड़े नियम भी उन्हें मुश्किल में डालते रहते हैं. कुछ नियम तो ऐसे भी हैं जिन्हे तोड़ने पर कामगारों को जेल और जुर्माने के साथ देश भी बाहर भी निकाल दिया जाता है.

ऐसा ही एक और नियम-कानून इन दिनों में कामगारों को तकलीफ दे रहा है. जिसे नए कामगारों और वहां काम की तलाश में जा रहे लोगों को जान लेना चाहिए, क्योंकि इसकी जानकारी नहीं होने के वजह से कामगार बुरी तरह से फंस सकते हैं या उन्हें फंसाया जा सकता है.
 
 
इस नियम के तहत अगर कोई प्रवासी कामगार स्पॉन्सर करने वाले नियोक्ताओं (कफ़ील) के साथ करार तोड़ता है तो उसपर बड़ा जुर्माना लगाया जा सकता है. इतना ही नहीं करार तोड़ने वाले प्रवासी कामगार को निर्वासन और देश में प्रवेश पर स्थाई प्रतिबंध की सजा भुगतनी पड़ सकती है.

बता दें कि पासपोर्ट एजेंसी ने सऊदी अरब के नागरिकों से भी अपील की है कि वे कफ़ाला से किनारा करने वाले कामगारों को अपने यहां काम न दें.
व्यवस्था यानी अप्रवासी कामगारों के लिए स्थानीय प्रायोजक. एजेंसी का कहना है कि यदि उन्होंने ऐसा किया तो उन्हें भारी जुर्माना ओर जेल भी हो सकती है.

BBC के अनुसार कई मानवाधिकार संगठन पहले भी कफ़ाला व्यवस्था को खत्म करने की मांग करते रहे हैं. उनके अनुसार यह एक तरह की गुलामी है. सऊदी अरब में कफ़ाला व्यवस्था लागू है. इसके अनुसार यहां विदेशों से आए कामगारों को स्थानीय प्रायोजक के बग़ैर रोज़गार नहीं मिल सकता.
सऊदी अरब में एक करोड़ से ज्यादा विदेशी कामगार हैं. अब ये सख़्ती केवल प्रवासी कामगारों तक ही सीमित नहीं है.

BBC की माने तो कफ़ाला से किनारा करने वाले कामगारों को रोज़गार देने वाले स्थानीय लोगों के लिए दिक्कत भी हो सकती है.सऊदी अरब की पासपोर्ट एजेंसी ने स्थानीय नागरिकों से अनुरोध किया है कि वो करार तोड़कर भागने वाले कामगारों को रोजगार न दें. ऐसा करने पर उन पर भी भारी ज़ुर्माना लगाया जा सकता है.

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