हज की विशेष शर्तें पूरी करने वाले हर मुसलमान पर वाजिब है कि वह अपने जीवन में कम से कम एक बार हज करे। एक और सृष्टि को पैदा करने वाले अल्लाह के सामने झुकने का नाम हज है। इस्लाम में जो भी बालिग़, आक़िल, स्वतंत्र, और वित्तीय इत्तेताअत (सामर्थ) रखता हो उस पर हज वाजिब होता है। पूरी दुनिया से हर वर्ष लगभग 20 लाख लोग हज करने के लिए वही की ज़मनी पवित्र शहर मक्का की यात्रा करते हैं। यही कारण है कि हज का मौस मुसलमानों के लिए मुबारक और यादों से भरा समय होता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से हज भयानक यादों वाला बन गया है। 2015 में हुई त्रासदी पर सऊदी सरकार की प्रतिक्रिया और लापरवाही उस कटु दुर्घटना की भयानक यादों को दो साल बीतने के बाद भी ताज़ा कर रही है।
2015 में घटना वाली मिना त्रासदी सऊदी शाही प्रबंधन के इतिहास का सबसे काला अध्याय है, जिसमें हज़ारों लोग सऊदी शासन के कुप्रबंधन की भेंट चढ़ गए। हालांकि उससे पहले के वर्षों में सऊदी बादशाहत ने मिना त्रासदी जैसे बहुत से कार्य अंजाम दिए थे जो सऊदी शासन के कुप्रबंधन और अयोग्यता को दर्शाते हैं।

दो वर्ष पहले हज में लाखों लोगों द्वारा रमी जमरा करते समय एक मानवीय त्रासदी हुई। ग़ैर आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार हद से ज़्यादा भीड़ और अत्यधिक गर्मी के कारण लगभग 8000 लोग मारे गए। सामान्य सी बात है कि मक्का में जब एक स्थान पर बीस लाख से अधिक लोग जमा हों ख़ास प्रबंधन किए जाते हैं ताकि मुसलमान सिस्टम और नंबर के हिसाब से अपने आमाल को अंजाम दें। हज के कार्यक्रम की प्रोग्रामिंग और प्रबंधन भी आले सऊद के अधिकारियों के ज़िम्मे है।

दूसरी तरफ़ मिस्र की वेबसाइट अलवफ़्द ने इससे पहले सऊदी अरब से छपने वाले समाचार पत्र रियाज़ के हवाले से मस्जिदुल आज़म के सहनों में भीड़ की अधिकता के कारण 18 उमरा करने वालों घायल होने की खबर दी थी।

अलवफ़्द ने लिखाः मक्का मुकर्रमा क्षेत्र में आपातकालीन और संकट प्रबंधन विभाग ने इस शहर में राष्ट्रीय सुरक्षा संचालन केंद्र की तरफ़ से दारुल तौहीद होटल के पास मस्जिदुल हराम में भीड़ के कारण दुर्घटना की रिपोर्ट प्राप्त की है।

सऊदी अधीकारी अब भी मिना त्रासदी में मरने वालों के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय छानबीन से इनकार कर रहे हैं। सऊदी अधिकारी सच्चाई सामने लाने वाली कमोटी की जांच से डरे हुए हैं, और ऐसा प्रतीत होता है उनको डर है कि कहीं जांच कमेटी की जांच में सच्चाई सामने आ जाए, और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसकी संवैधानिकता फीकी पड़ जाए, और विरोध प्रदर्शन शुरू हो जाए या फिर उसको अंतर्राष्ट्रीय अदालत में घसीट लिया जाए।

ऐसा प्रतीत होता है कि मिना त्रासदी के बारे में सऊदी अधिकारियों द्वारा फैलाई जाने वाली अफ़वाहों और उसकी ज़िम्मेदाही अफ़्रीकी हाजियों पर रखने के कई कारण हैं, जो कि सीरिया और यमन में जो सऊदी अरब की स्थिति है उसको देखते हुए उनसे टकराना नहीं चाहते हैं, और उनके मुकाबले में आने में उन्हें डर है।

स्पष्ट है कि अगर जांच शुरु होती है तो सऊदी अधिकारियों और सऊदी सहायता दलों द्वारा जानबूझ कर की जाने वाली गल्तियां सामने आ जाएंगी, और यह सऊदी अरब पर क़ानूनी बोझ लाद सकता है। सऊदी अधिकारियों द्वारा अपर्याप्त सहायता पहुँचाने की गलती सामने आने के बाद यह 8000 से अधिक मारे जाने वाले और हज़ारों घायल हाजियों के हर्जाने की मांग की भूमिका बन सकती है, बल्कि मामला यहीं पर समाप्त नहीं होता है, सऊदी अधिकारियों की गलती स्पष्ट होने के साथ ही यह मामला अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक अदालत में खुल सकता है, और इस अदालत में इस मामले को “सामूहिक जनसंहार की सहायता” का नाम दिया जाए। सऊदी अधिकारी इसी से बचना चाहते हैं।

“सरकारी जिम्मेदारी” परंपरागत अंतर्राष्ट्रीय कानून के मौलिक सिद्धांतों में से एक है, जिसके अनुसार सऊदी सरकार की जिम्मेदारी है कि वह विदेशी नागरिकों की जान और माल की सुरक्षा करे। इस क़ानून के अनुसार, गलती, कोई कार्य या कोई ऐसा कार्य न करना जो कि अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के विरुद्ध हो, या फिर यह कि किसी दूसरे को हानि हो जाए, इस पर सऊदी अधिकारियों की जवाबदेही बनती है, जैसा कि हाजियों को ऐसा नुकसान पहुँचाया गया जिसमें उनकी जान चली गई, और विदेशी नागरिकों की सुरक्षा को ख़तरे में डालने से अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन किया गया है।

इसके अतिरिक्त डब्ल्यूएचओ संविधान के लेख 75 और 76 के अनुसार अगर व्यक्तियों के स्वास्थ्य में दोष पैदा होता है तो वह देश जो इस संविधान के सदस्य है वह अंतर्राष्ट्रीय अदालत जो कि संयुक्त राष्ट्र का न्याय विभाग है में शिकायत कर सकते हैं, और अनुच्छेद 76 के अनुसार परामर्शदाता वोट की मांग कर सकते हैं। परामर्शदाता वोट में भी अदालत समीक्षा करते हुए गलती करने वाले देश का नाम सामने ला सकती है।

उल्लेखनीय है कि मीडिया ने 1423 हिजरी से 1436 हिजरी के बीच सऊदी अरब में मार जाने वाले हाजियों की संख्या प्रकाशित की है।

इन आंकड़ों में इस दौरान मारे जाने वाले सभी हाजियों के नाम प्रकाशित किए गए हैं।

हज और उमरा चैनल की तरफ़ से ट्वीटर पेज पर जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार 1423 से 1436 के बीच 90276 लोग आले सऊद द्वारा हज के कुप्रबंधन के कारण मारे गए हैं।

इन आंकड़ों के अनुसार मारे जाने वालों में 56895 पुरुष 33344 महिलाएं और 32 वह लोग हैं जिनके लिंग को सुनिश्चित नहीं किया जा सका।

इस चैनल ने बताया है कि मारे जाने वालों में 31411 सऊदी नागरिकता वाले हैं, और मारे जाने वालों में इसी देश का पहला नंबर है, उसके बाद पाकिस्तान 7991 की संख्या के साथ दूसरे नंबर पर है।

5837 मौतों के साथ इंडोनेशिया का तीसरा स्थान है उसके बाद 4989 मौतों के साथ नाइजीरिया चौथे, 4191 मौतों के साथ म्यांमार पाँचवे, 3744 मौतों के साथ भारत छठे, 3617 मौतों के साथ बांग्लादेश सातवें, और 3313 मौतों के साथ यमन आठवें नंबर पर है।

इस रिपोर्ट के अनुसार इस लिस्ट में बहुत से देशों का नाम है, इसी प्रकार, सीरिया, अल्जीरिया, सूडान, मोरक्को, ईरान, तुर्की, मलेशिया वह देश हैं जिनके नागरिकों की हज में मौत हुई है।
इनपुट: hindkhabar


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