सऊदी शासन ने अपनी राजनीतिक नीतियों के विरुद्ध जाने वाले कुछ देशों जैसे कतर, सीरिया, फिलिस्तीन, लीबिया और यमन के नागरिकों के हज पर आने पर प्रतिबंध लगा दिया है।
आश्चर्य की बात तो यह है कि सऊदी अरब में हज पर प्रतिबंध लगने वाले देशों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है, और सऊदी अरब अपने इस ग़ैर इस्लामी व्यवहार का बचाव भी कर रहा है।
 
कतरी हाजी
सऊदी अरब के तानाशाहों ने लगातार दूसरे साल कतरी हाजियों के रास्ते में रुकावटें खड़ी की हैं, ताकि उनको हज करने से रोक दे।
क़तरी हाजी हज के लिए सऊदी अधिकारियों की अनुमति की प्रतीक्षा कर रहे थे, लेकिन अब वह सऊदी अरब की अत्याचार पूर्ण नीतियों और फैसलो के कारण एक बार फिर हज से वंचित रह गए हैं।

सऊदी अधिकारियों ने क़तर पर प्रतिबंध लगाने के बाद अब क़तरी हाजियों पर प्रतिबंध लगाने की नीति अपनाई है। हज अब तक ऐसा वाजिब था जो कि अपने इतिहास में राजनीतिक उठा पटक और खींचातानी से दूर था।
क़तरी हाजियों का इस बारे में कहना है कि क़तरी हाजियों पर सऊदी अरब द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने का कारण राजनीतिक स्तर पर जारी सऊदी अरब और क़तर का मतभेद है।
हज के लिए क़तर का वार्षिक कोटा भी 8 हज़ार से घटा कर 1300 कर दिया गया है, हालांकि कतर से भौगोलिक और जनसंख्या के मामले में कहीं छोटे देशों के कोटे में कोई कटौती नहीं की गई है।
इस संबंध में हज और उमरा कैंपेन के निदेशक अशरफ़ शाहीन ने क़तरी हाजियों के क्रोध और रोष की तरफ़ इशारा करते हुए कहा है कि सऊदी अरब ने क़तरी हाजियों के लिए कई रुकावटें खड़ी की है, और उनके कोटे को भी कम कर दिया है।
इसी के साथ ही सऊदी अधिकारियों ने क़तरी हाजियों की कतर की उड़ानों से सऊदी अरब आने पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। और इसी के साथ ही क़तरी हाजियों के लिए केवल जद्दा का अब्दुल अज़ीज़ एयरपोर्ट ही खोला गया है।

यमनी हाजी
इतिहास गवाह है कि जब से नज्द की ज़मीन पर आले सऊद की हुकूमत आई है तभी से अल्लाह के घर की ज़ियारत के लिए आने वाले हाजियों के साथ लगातार बुरा व्यवहार किया गया है। बुरा व्यवहार झेलने वालों में यमन के हाजी भी शामिल हैं।
 
यमन के हाजियों का विरुद्ध आले सऊद ने 1922 दर्दनाक जनसंहार किया जिसमें अब्दुल अज़ीज़ की सेना ने असीर के तनीमा क्षेत्र में 2900 यमनी हाजियों का कत्लेआम कर दिया और उनकी सम्पत्ती को लूट लिया, यही वह वर्ष था कि जब आले सऊद ने नज्द पर कब्ज़ा कर लिया।
 
यमनी हाजियों को सऊदी अधिकारियों के व्यवहार से हमेशा शिकायत रही है, सऊदी अधिकारी यमनी हाजियों पर शिर्क का आरोप लगाते हैं, और उनको पैग़म्बर की कब्र की जियारत नहीं करने देते हैं, और उनकी किताबों को ज़ब्त कर लेते हैं।
 
जहां एक तरफ़ सऊदी अरब ने 2015 से यमनी जनता के हक़ में इतिहास का सबसे भयानक जनसंहार जारी कर रखा है, वहीं दूसरी तरफ़ 18000 यमनी हाजियों को इस वर्ष हज करने से भी रोक दिया गया है।
 
यमन के हज और वक्फ़ संगठन के उप निदेशक अब्दुल रहमान अलक़लाम ने कहा हैकि सऊदी अरब ने 2016 से अब तक़ यमनी हाजियों के हज के रास्ते में कई प्रकार की रुकावटें खड़ी की है, इस संबंध में वक्फ़ मंत्रालय ने 2016 में सऊदी अरब के हज मंत्रालय को कई पत्र लिखे लेकिन उनमें से किसी का भी जवाब नहीं आया।
 
फिलिस्तीनी क्षेत्र से बाहर रहने वाले फ़िलिस्तीनी
पिछले वर्ष के आरम्भ में सऊदी अधिकारियों ने एक आदेश जारी करके अरब देशों में रह रहे फिलिस्तीनियों के हज पर आने पर प्रतिबंध लगा दिया, और शर्त लगाई कि उनको फिलिस्तीनी प्राधीकरण से विशेष प्रकार का अनुमित पत्र लेना होगा।
 
उल्लेखनीय है कि फिलिस्तीनी हाजी गाज़ा से हज के लिए जा सकते हैं।
 
सीरियाई हाजी
वक्फ़ मंत्रालय ने अपने साइट पर एक बायन जारी करके कहा है कि सऊदी अधिकारी अब भी सीरियाई नागरिकों को हज के अधिकार से वंचित रखे हुए हैं।
इस मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि यह मामला लगातार सातवें वर्ष भी जारी है।
सीरिया के वक्फ़ मंत्रालय का कहना है कि क़ुरआन की इस आयात “जिसके पास भी इस्तेताअत हो उस पर हज वाजिब है” के अनुसार हज के लिए इस्तेताअत की शर्त पूरी नहीं होती है, क्योंकि सऊदी अरब के वहाबी अधिकारियों ने हज का राजनीतिकरण कर दिया है।
सीरिया के वक्फ़ मंत्रालय ने इस देश के विदेश मंत्रालय द्वारा इस्लामी सहयोग परिषद और सऊदी हज मंत्रालय को कई बार इस मामले से आगाह किया है।
 
नतीजा
विश्लेषकों का मानना है कि सऊदी अरब की राजनीतिक व्यवस्था को देखते हुए आले सऊद शासन के हाजियों को हज से रोकने का अधिकार नहीं है।
हरमैन शरीफ़ैन का प्रबंधन और हज सभी मुसलमानों का अधिकार है, और ऐसे हालात में कि जब आले सऊद के पास इस ईश्वरीय वाजिब के प्रबंधन को योग्यता नहीं है, तो मुसलमानों की शान के अनुसार इस्लामी देशों की तरफ़ से इसके सही प्रबंधन की मांग किया जाना ज़रूरी है।
अंत में इस चीज़ की तरफ़ भी ध्यान दिलाना आवश्यक है कि सऊदी अरब ने हज का लाभ उठाते हुए अमरीका और ज़ायोनी शासन के साथ सहयोग को अपनी नीतियों में शामिल कर लिया है।

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